Tuesday, July 14, 2009

एक पागल......

गलियों से गुजरते हुए ,
कुछ दूर रह चलते हुए
दिखता है मुझे एक पागल,
कभी हँसते हुए, कभी रोते हुए,कभी खुश तो कभी तड़पते हुए,
करता हर अन्जान से वो बातें और रहता है अक्सर खोया सा,
खुली आँखों के संग भी वो दिखता है अक्सर सोया सा,
लव उदास,ऑंखें उदास,जीने की न हो जैसे कोई प्यास
रहता है वो पागल,
कभी जेठ की दुपहरी में झुलसते हुए,
कभी पूस की रातों में ठिठुरते हुए,
न जाने क्यूँ मगर उसकी उदासी अनजानी नहीं लगती,
दुनिया की भीड़ सी बेगानी लगती,
मुझे पता है मेरे अन्दर भी एक ऐसा ही पागल है,
ऊपर से भले हूँ शांत, अन्दर मची एक हलचल है,
मिल जाती है कई बार मुझे मेरी भावनाएं
यूँ ही कभी सिसकते हुए और कभी बिलखते हुए!!!!!!!!!!

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