ये कोई चाँद है,
बादल से छिटक कर निकला है ,
ये सितारा है,
सरेशाम चमक कर निकला है,
यूँ मेरी ऑंखें क्यों ढूंढे है अँधेरा अक्सर,
ये चाँद का नूर है जो बहक कर निकला है,
ये आफताब है,
अंधेरे की फतह को निकला है,
ये भंवरा है,
फूलों की गोद से महक कर निकला है,
मेरी सांसें यूँ मदहोश हुए जाती है क्यूँ,
ये उनके प्यार का जज्बा है,
जो बहक कर निकला है ,
रात अब जाकर कही गहरी होने लगी है,
चांदनी में नहाकर सुनहरी होने लगी है,
क्यूँ मेरा मन बेताब होने लगा यूँ,
जैसे पंछियों का कोई रेला चहक कर निकला है,
फिजां में मोहब्बत का रंग छाने लगा है,
उस छूअन क्यों ये मन घबराने लगा है,
मेरी धड़कनें गर्म होने लगी यूँ ,
जैसे उनकी सांसों का अंगार दहक कर निकला है।
ये कोई चाँद है............
ये सितारा है..........
12 comments:
Pretty beautiful & romantic....
V.V.Nice. keept it up!
बेहद खूबसूरत...
bahut achha laga
badhai !
उम्दा रचना. स्वागत है आपका.
- Sulabh Poetry यादों का इंद्रजाल
अच्छी शुरूआत....
शुभकामनाएं....
अरे नहीं भई,ये तो ताज़ा-ताज़ा नया-नया-सा सवेरा है...जो अभी-अभी भूले से मगर चहक कर निकला है....!!
खूब सूरत कविता और एक सकारात्मक सोच आप सच में बधायी के पात्र हैं..
कहो कि जीना है
श्याम सखा
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
nice.narayan narayan
shukriya doston mera hosla badhane k liye
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