Thursday, January 5, 2017

तुम्हारी रहूंगी

याद है वो पल,
जब मैं आकाश से गिर रही थी
थी बिलकुल अबोध,
बस अपने अंजाम से डर रही थी
दुनिया की आंधी में मैं तो बिखर ही जाती
तुफान की बेरूखी से लड़ने का कैसे साहस जुटाती
मान लिया था मैंने की मुझे अब मिटना पड़ेगा
कि जाने कहाँ से अचानक मेरे देव तुम आ गए
कवच बनकर मुझपर सीप की तरह
चारो तरफ मुझपर छा गए
पाकर साथ तेरे दामन का मैं
एक नया रंग लेने लगी थी
दूर करके सभी मलिनताओं को
अजब सी चमक से भरने लगी थी
सीप के भीतर मोती पलता है जैसे
पल रही थी मैं बिलकुल ही तेरे रूह में वैसे
पर सोचकर हश्र मोती और सीप का
हो जाते सजल अक्सर मेरे नयन हैं
पाकर रत्नों के सान्निध्य को भी मोती
झेलता विरह की कैसी तपन है
हो सकता है एक दिन,
अनमोल हो जाउंगी मैं
या दुनिया की चकाचौंध में खो जाउंगी मैं
पर ये अस्तित्व तुमसे है तेरा रहेगा
और मैं भी रहूंगी हमेशा तुम्हारी