बनाने में हमें,
क्यों की तुमने साजिश,
देकर कटी हुई पंख,
भर दी ऊँचा उड़ने की ख्वाहिश,
थामना चाहती हूँ मै
असमान का दामन,
बिताना चाहती हूँ
पंछियों के संग बचपन,
बहक जाता है मन
अक़्सर बादलों से मिलकर ,
चाहती हूँ मुस्कुराना ,
बिल्कुल फूलों सी खिलकर
छूकर गगन को मै,
चांदनी का आलिंगन चाहती हूँ,
जहाँ का चाँद हो बस मेरा,
वो नीला गगन चाहती हूँ,
मगर ये जो चाहत है मेरी,
जागती आँखों का सपना,
है बिल्कुल ही वैसे जैसे,
कागज के फूलों का खिलना,
बढ़ना है मुझे ,
एक ज्वाला से बचकर,
गुजरना है मुझे,
राहों के काँटों से संभलकर
न खोना है ख़ुद को
ख्वाबों के जालों में,
रखना है ख़ुद को बचाकर,
दुनिया के सवालों से,
अब तो बस इतनी सी है चाहत
अपने हिस्से की जमीन और अस्मा मांग लाऊं,
अनंत को मान लूँ सीमा,
क्षितिज तक भी पहुंच जाऊँ
When we see someone in pain, it memorizes us about the moment when we were loosing hopes & no one was around to keep his hands on our solder & to say that I m always there 4 u & we also do the same thing becoz we have stopped feeling for others........
Friday, August 28, 2009
Monday, August 24, 2009
छलावा
निगाहें है बड़ी कातिल,
हँसी भी जानलेवा है,
बहक तू यूँ न मेरे दिल,
ये पल भर का छलावा है
मिलती है जो ऑंखें हमारी उनकी आँखों से,
इन आँखों पर झट से पलकों का परदा गिर जाता है
पर ये ऑंखें है बेपर्द क्यूँ इतनी,
इन बेपर्द आँखों का न जाने क्या इरादा है
नज़र बेचैन लगते हैं
पर लव क्यूँ मौन लगते हैं
शरारत है ये उनकी नज़रों का,
या मेरा ख़ुद का भुलावा है
निगाहें ....
होठों की कुटिल मुस्कान पल पल रंग बदलती है
लवों पे चुप्पी रहती है
हँसी भी जानलेवा है,
बहक तू यूँ न मेरे दिल,
ये पल भर का छलावा है
मिलती है जो ऑंखें हमारी उनकी आँखों से,
इन आँखों पर झट से पलकों का परदा गिर जाता है
पर ये ऑंखें है बेपर्द क्यूँ इतनी,
इन बेपर्द आँखों का न जाने क्या इरादा है
नज़र बेचैन लगते हैं
पर लव क्यूँ मौन लगते हैं
शरारत है ये उनकी नज़रों का,
या मेरा ख़ुद का भुलावा है
निगाहें ....
होठों की कुटिल मुस्कान पल पल रंग बदलती है
लवों पे चुप्पी रहती है
निगाहे बात करती है
अंदाजे बयां करने की क्यूँ उनकी इतनी अलग सी भाषा है
निगाहें हैं बड़ी ..........
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