Friday, July 31, 2009

प्रयोजन

सागर के तट पर खड़ा मुसाफिर अपने भाग्य को रोता है,
सामने बहती है जलधारा पर वो प्यासा क्यूँ होता है?
तपती रेत पर चलते चलते,
छाया की तलाश वो करता है,
आशा की किरण जगती है उसके मन में,
कहीं खजूर का वृक्ष जब दिखता है,
पर बेकार!अपनी इस बेकार की कोशिश पर,
वो यही सोचा करता है,
सामने बहती है जलधारा पर वो प्यासा क्यूँ रहता है?
बर्फीली सर्द शामों में जब अँधेरा छाने लगता है,
अंधेरे का ये सन्नाटा उसे रौशनी की याद दिलाने लगता है,
रौशन करने अपनी शामों को वो जुगनुओं को तलाश कर लाता है,
पर बेचारा इस बार भी असफलता ही हाथ लगाता है,
सामने बहती है जलधारा पर वो प्यासा ही रह जाता है.......