Sunday, June 28, 2009

सपना....

रात अकेली थी,
वो मेरी सहेली थी,
उसकी गोद में चाँद जाकर ठहरा था,
उसे निहारता ऊपर उठा मेरा चेहरा था,
लग रहा था मानों हम एक दुसरे के लिए ही खड़े थे,
हमारी इस स्थिति से अन्जान सब बेसुध पड़े थे,
वो चाँद कह रहा था तू है मेरी प्रिया मैं हूँ तेरा प्रियतम,
ये बेला है मधुर होना है जो अपना संगम,
मैं सोच में थी डूबी पहुँचुगी वहां कैसे,
अचानक मेरी राहों में तारे बिछ गए,
वो बाहें फैलाये था मेरे भाग्य खुल गए,
एक तेज़ था उसकी आँखों में
और लवों पे मुस्कराहट,
शरारत भरी अदाएं बाँहों में भर लेने की कसमसाहट ,
कितनी शीतलता कितना प्यार था उसकी निगाहों में,
भूल गई थी सबकुछ मैं उसकी पनाहों में,
अभी तो उसने मुझे धीरे से छुआ था,
हौले से मेरे दिल में कहीं दर्द सा हुआ था,
तभी अचानक मैंने सुनी एक आवाज़ थी,
ओह! ये सपना था मेरा मैं जाग चुकी थी।