Friday, September 4, 2009

कैसी बेबसी?

समर्पण की बातें तू क्यूँ करता है,
मुकद्दर में तेरे क्या खोना लिखा है,
दिखती हमेशा भीगी पलकें ही तेरी,
तेरी आँखों को हर पल क्या रोना लिखा है,
डरता है क्यूँ हमेशा तू कदम बढ़ने से,
लौट जाता है वापस थोड़ा सा डगमगाने से,
ज़िन्दगी के साथ रहकर भी पल-पल मरता है तू,
सपनो को आकार तो देता है,
क्यूँ नही उसमे रंग भरता है तू,
बता तो जरा क्या बात है,
क्या फितरत में तेरी सिर्फ़ सपने संजोना लिखा है,
मुकद्दर में तेरे क्या खोना लिखा है,
भावनाओं के अंधेरे में तू भटकता है रहता,
दिल कहता है बहुत कुछ
होठों पर पहरा रहता
करके सबकुछ समर्पित ,
खुश होने की कोशिश है करता
लगता है तुमने अपनी जीवन माला में
ग़मों के मोती पिरोना लिखा है
मुकद्दर में तेर क्या खोना लिखा है,
तन्हाई के सान्निध्य में गुजार देता है रातें
बीत जाते हैं दिन सबको हँसते हंसाते
रखकर दर्द अपने दिल के भीतर ,
करता है तू मुस्कराहट की बातें,
क्या किस्मत में तेरी, तेरे दर्द को ,
तेरे आंसू से ही भिगोना लिखा है?
मुकद्दर में तेरे क्या खोना लिखा है?
कोई चोट दिल में तेरे जा लगी है
हँसी है होठों पर दूर फिर भी खुशी है,
आँखों में है दिखती एक बेबसी है
बाँट ले अपने दर्द तू मुझसे
हो सकता है हमें संग होना लिखा है...

2 comments:

Rohit Jain said...

kavita achchhi lagi.

daanish said...

bahut achhee....
aahvaan karti huee nazm...
aapki mehnat saarthak ho yahi duaa hai....