Friday, September 4, 2009

कैसी बेबसी?

समर्पण की बातें तू क्यूँ करता है,
मुकद्दर में तेरे क्या खोना लिखा है,
दिखती हमेशा भीगी पलकें ही तेरी,
तेरी आँखों को हर पल क्या रोना लिखा है,
डरता है क्यूँ हमेशा तू कदम बढ़ने से,
लौट जाता है वापस थोड़ा सा डगमगाने से,
ज़िन्दगी के साथ रहकर भी पल-पल मरता है तू,
सपनो को आकार तो देता है,
क्यूँ नही उसमे रंग भरता है तू,
बता तो जरा क्या बात है,
क्या फितरत में तेरी सिर्फ़ सपने संजोना लिखा है,
मुकद्दर में तेरे क्या खोना लिखा है,
भावनाओं के अंधेरे में तू भटकता है रहता,
दिल कहता है बहुत कुछ
होठों पर पहरा रहता
करके सबकुछ समर्पित ,
खुश होने की कोशिश है करता
लगता है तुमने अपनी जीवन माला में
ग़मों के मोती पिरोना लिखा है
मुकद्दर में तेर क्या खोना लिखा है,
तन्हाई के सान्निध्य में गुजार देता है रातें
बीत जाते हैं दिन सबको हँसते हंसाते
रखकर दर्द अपने दिल के भीतर ,
करता है तू मुस्कराहट की बातें,
क्या किस्मत में तेरी, तेरे दर्द को ,
तेरे आंसू से ही भिगोना लिखा है?
मुकद्दर में तेरे क्या खोना लिखा है?
कोई चोट दिल में तेरे जा लगी है
हँसी है होठों पर दूर फिर भी खुशी है,
आँखों में है दिखती एक बेबसी है
बाँट ले अपने दर्द तू मुझसे
हो सकता है हमें संग होना लिखा है...

Friday, August 28, 2009

छोटी सी है चाहत

बनाने में हमें,
क्यों की तुमने साजिश,
देकर कटी हुई पंख,
भर दी ऊँचा उड़ने की ख्वाहिश,
थामना चाहती हूँ मै
असमान का दामन,
बिताना चाहती हूँ
पंछियों के संग बचपन,
बहक जाता है मन
अक़्सर बादलों से मिलकर ,
चाहती हूँ मुस्कुराना ,
बिल्कुल फूलों सी खिलकर
छूकर गगन को मै,
चांदनी का आलिंगन चाहती हूँ,
जहाँ का चाँद हो बस मेरा,
वो नीला गगन चाहती हूँ,
मगर ये जो चाहत है मेरी,
जागती आँखों का सपना,
है बिल्कुल ही वैसे जैसे,
कागज के फूलों का खिलना,
बढ़ना है मुझे ,
एक ज्वाला से बचकर,
गुजरना है मुझे,
राहों के काँटों से संभलकर
न खोना है ख़ुद को
ख्वाबों के जालों में,
रखना है ख़ुद को बचाकर,
दुनिया के सवालों से,
अब तो बस इतनी सी है चाहत
अपने हिस्से की जमीन और अस्मा मांग लाऊं,
अनंत को मान लूँ सीमा,
क्षितिज तक भी पहुंच जाऊँ

Monday, August 24, 2009

छलावा

निगाहें है बड़ी कातिल,
हँसी भी जानलेवा है,
बहक तू यूँ न मेरे दिल,
ये पल भर का छलावा है
मिलती है जो ऑंखें हमारी उनकी आँखों से,
इन आँखों पर झट से पलकों का परदा गिर जाता है
पर ये ऑंखें है बेपर्द क्यूँ इतनी,
इन बेपर्द आँखों का न जाने क्या इरादा है
नज़र बेचैन लगते हैं
पर लव क्यूँ मौन लगते हैं
शरारत है ये उनकी नज़रों का,
या मेरा ख़ुद का भुलावा है
निगाहें ....
होठों की कुटिल मुस्कान पल पल रंग बदलती है
लवों पे चुप्पी रहती है
निगाहे बात करती है
अंदाजे बयां करने की क्यूँ उनकी इतनी अलग सी भाषा है
निगाहें हैं बड़ी ..........

Thursday, August 6, 2009

एक दर्द है

जाने क्यों न मिटा पाई,
उसका अक्स एह्सांसों से,
फिर क्यूँ हमें उनसे दूरी सी लगती है,
मिला था क्यूँ हमें फिर वो,
अगर यूँ ही बिछड़ना था ,
वो शख्स जिसके बिन ज़िन्दगी अधूरी सी लगती है,
मोहब्बत पाक थी मेरी खुदा की हर दुआं से,
झुका धरती पर सर अपना माँगा था उसे आसमा से
लोग ज़िन्दगी भर के साथ की बात करते है,
हमने तो अपनी मौत भी उनके ही नाम कर दी थी,
अब सच कहें तो ज़िन्दगी एक मजबूरी सी लगती है,

Friday, July 31, 2009

प्रयोजन

सागर के तट पर खड़ा मुसाफिर अपने भाग्य को रोता है,
सामने बहती है जलधारा पर वो प्यासा क्यूँ होता है?
तपती रेत पर चलते चलते,
छाया की तलाश वो करता है,
आशा की किरण जगती है उसके मन में,
कहीं खजूर का वृक्ष जब दिखता है,
पर बेकार!अपनी इस बेकार की कोशिश पर,
वो यही सोचा करता है,
सामने बहती है जलधारा पर वो प्यासा क्यूँ रहता है?
बर्फीली सर्द शामों में जब अँधेरा छाने लगता है,
अंधेरे का ये सन्नाटा उसे रौशनी की याद दिलाने लगता है,
रौशन करने अपनी शामों को वो जुगनुओं को तलाश कर लाता है,
पर बेचारा इस बार भी असफलता ही हाथ लगाता है,
सामने बहती है जलधारा पर वो प्यासा ही रह जाता है.......

Wednesday, July 22, 2009

क्या है ये ????????

ये कोई चाँद है,
बादल से छिटक कर निकला है ,
ये सितारा है,
सरेशाम चमक कर निकला है,
यूँ मेरी ऑंखें क्यों ढूंढे है अँधेरा अक्सर,
ये चाँद का नूर है जो बहक कर निकला है,
ये आफताब है,
अंधेरे की फतह को निकला है,
ये भंवरा है,
फूलों की गोद से महक कर निकला है,
मेरी सांसें यूँ मदहोश हुए जाती है क्यूँ,
ये उनके प्यार का जज्बा है,
जो बहक कर निकला है ,
रात अब जाकर कही गहरी होने लगी है,
चांदनी में नहाकर सुनहरी होने लगी है,
क्यूँ मेरा मन बेताब होने लगा यूँ,
जैसे पंछियों का कोई रेला चहक कर निकला है,
फिजां में मोहब्बत का रंग छाने लगा है,
उस छूअन क्यों ये मन घबराने लगा है,
मेरी धड़कनें गर्म होने लगी यूँ ,
जैसे उनकी सांसों का अंगार दहक कर निकला है।
ये कोई चाँद है............
ये सितारा है..........

Tuesday, July 14, 2009

एक पागल......

गलियों से गुजरते हुए ,
कुछ दूर रह चलते हुए
दिखता है मुझे एक पागल,
कभी हँसते हुए, कभी रोते हुए,कभी खुश तो कभी तड़पते हुए,
करता हर अन्जान से वो बातें और रहता है अक्सर खोया सा,
खुली आँखों के संग भी वो दिखता है अक्सर सोया सा,
लव उदास,ऑंखें उदास,जीने की न हो जैसे कोई प्यास
रहता है वो पागल,
कभी जेठ की दुपहरी में झुलसते हुए,
कभी पूस की रातों में ठिठुरते हुए,
न जाने क्यूँ मगर उसकी उदासी अनजानी नहीं लगती,
दुनिया की भीड़ सी बेगानी लगती,
मुझे पता है मेरे अन्दर भी एक ऐसा ही पागल है,
ऊपर से भले हूँ शांत, अन्दर मची एक हलचल है,
मिल जाती है कई बार मुझे मेरी भावनाएं
यूँ ही कभी सिसकते हुए और कभी बिलखते हुए!!!!!!!!!!

न जाने कौन है वो?

बेसुध पड़ा किनारों पर,
भावों के अंगारों पर,
बेबस संजीदा दीवारों पर
मांगता दुआएं मज़ारों पर
न जाने कौन है वो?
मूर्च्छित हँसी और सजल नयन,
विक्षप्त मुख मनो दुःख-दर्पण
और दुखों की बदली से अश्रुवर्षा रोकने का संयम
न जाने कौन है वो?
बँटोरता चिंगारी राख़ के ढेरों से ,
मांगता रौशनी वो अंधेरों से
बचता फिरता दुनिया के फेरों से ,
न जाने कौन है वो?
आंखों में उसकी अक्सर एक वेदना सी रहती है,
बिना शब्दों में बंधे हुए,
उसकी चुप्पी भी कुछ कहती है,
उसके मन की पीड़ा बस उसकी अन्तर आत्मा ही सहती है
उसे देखकर ये लगता है,
जैसे सदियों से मौन है वो,
न जाने कौन है वो?

Sunday, June 28, 2009

सपना....

रात अकेली थी,
वो मेरी सहेली थी,
उसकी गोद में चाँद जाकर ठहरा था,
उसे निहारता ऊपर उठा मेरा चेहरा था,
लग रहा था मानों हम एक दुसरे के लिए ही खड़े थे,
हमारी इस स्थिति से अन्जान सब बेसुध पड़े थे,
वो चाँद कह रहा था तू है मेरी प्रिया मैं हूँ तेरा प्रियतम,
ये बेला है मधुर होना है जो अपना संगम,
मैं सोच में थी डूबी पहुँचुगी वहां कैसे,
अचानक मेरी राहों में तारे बिछ गए,
वो बाहें फैलाये था मेरे भाग्य खुल गए,
एक तेज़ था उसकी आँखों में
और लवों पे मुस्कराहट,
शरारत भरी अदाएं बाँहों में भर लेने की कसमसाहट ,
कितनी शीतलता कितना प्यार था उसकी निगाहों में,
भूल गई थी सबकुछ मैं उसकी पनाहों में,
अभी तो उसने मुझे धीरे से छुआ था,
हौले से मेरे दिल में कहीं दर्द सा हुआ था,
तभी अचानक मैंने सुनी एक आवाज़ थी,
ओह! ये सपना था मेरा मैं जाग चुकी थी।